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चाहत में क्या दुनियादारी...

स्वर: गुल बहार बानो चाहत में क्या दुनियादारी, इश्क़ में कैसी मजबूरी लोगों का क्या समझाने दो, उनकी अपनी मजबूरी मैनें दिल की बात रखी और तूने दुनियावालों की मेरी अर्ज़ भी मजबूरी थी उनका हुक़्म भी मजबूरी रोक सको तो पहली बारिश की बूँदों को तुम रोको कच्ची मिट्टी तो महकेगी है मिट्टी की मजबूरी जब तक हँसता गाता मौसम अपना है सब अपने हैं वक़्त पड़े तो याद आ जाती है मस्नूई मजबूरी मुद्दत गुज़री इक वादे पर आज भी क़ायम है ‘मुहसिन’ हमने सारी उम्र निबाही, अपनी पहली मजबूरी Youtube: To Listen Song, Click here!