करते हैं मुहब्बत सब ही मगर...
करते हैं मुहब्बत सब ही मगर, हर दिल को सिला कब मिलता है आती हैं बहारें गुलसन में, हर फूल मगर कब खिलता है… मैं राँझा न था तुए हीर न थी, हम अपना प्यार निभा न सके.. यूँ प्यार क ख़्वाब बहुत देखे, तहबीर मगर हम पा न सके.. मैं ने तो बहुत चाहा लेकिन, तु रख न सकी वादों का भरम.. अब रह रह कर याद आता है, जो तूने किये इस दिल पे सितम ..... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर… पर्दा जो हटा दूँ चेहरे से.. तुझे लोग कहीं गए हरजाई, मजबूर हूँ मैं दिल के हाथों, मंजूर नहीं तेरी रुस्वाई, सोचा है की अपने होठों पर, मैं चुप की मुहर लगा लूँगा, मैं तेरी सुलगती यादों से अब इस दिल को बहला लूँगा … मैं तेरी सुलगती यादों से अब इस दिल को बहला लूँगा .... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर, हर दिल को सिला कब मिलता है…… शब्दकोष: गुलशन: बगीचा तहबीर : अंजाम , सफलता , सपना हरजाई: बेवफा रुसवाई: बदनामी कविता : निदा फाजली गायन: गुलाम अली संगीत: नाशाद