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Showing posts from June, 2014

करते हैं मुहब्बत सब ही मगर...

करते हैं मुहब्बत सब ही मगर, हर  दिल को सिला कब मिलता है आती हैं बहारें गुलसन में, हर फूल मगर  कब खिलता है… मैं राँझा न था तुए हीर न थी, हम अपना प्यार निभा न सके.. यूँ प्यार क ख़्वाब बहुत देखे, तहबीर मगर हम पा न सके.. मैं ने तो बहुत चाहा लेकिन, तु रख न सकी वादों का भरम.. अब रह रह कर याद आता है, जो तूने किये इस दिल पे सितम ..... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर… पर्दा जो हटा दूँ चेहरे से.. तुझे लोग कहीं गए हरजाई, मजबूर हूँ मैं दिल के हाथों, मंजूर नहीं तेरी रुस्वाई, सोचा है की अपने होठों पर, मैं चुप की मुहर लगा लूँगा, मैं तेरी सुलगती यादों से अब इस दिल को बहला लूँगा … मैं तेरी सुलगती यादों से अब इस दिल को बहला लूँगा .... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर, हर  दिल को सिला कब मिलता है…… शब्दकोष: गुलशन: बगीचा तहबीर : अंजाम , सफलता , सपना हरजाई: बेवफा रुसवाई: बदनामी कविता : निदा फाजली गायन: गुलाम अली संगीत: नाशाद

सुना है बहुत पढ़ लिख गयी हो तुम

सुना है बहुत पढ़ लिख गयी हो तुम................ कभी वो लफ्ज भी पढ़ लिए होते जो हम कभी कह नहीं पाए .....

मेरे कॉलेज की लड़की है..

मेरे कॉलेज की लड़की है शायद मुझपे मरती है मुझको भी प्यार है उससे शायद पर क्या मैं हूँ उसके लायक हूँ इसी संदेह के घेरे में क्या कोई खूबी है मेरे में पर खूबी से मतलब ही क्या प्यार तो कमियों से भी होता है उसको प्यार मेरी कमियों से हो ऐसी तो उसमें कमी नहीं……….आखिर वो लड़की ही क्यूँ मेरे मन को भाती है शायद मुझसे ही मिलने सबसे पहले आ जाती है आँखों से मिलती रहती है बातों से ही कभी-कभी हर पल ऐसा लगता है ज्यों मिलके गई हो अभी-अभी……… जब शिक्षक कोई आकर मुझको गुस्से में डाट लगाता है चेहरा उसका उतर जाता मानो दिल जल जाता है जब करे प्रशंसा कोई मेरी तो वो खुश हो जाती है पहले मन में मुस्काती है फिर हँसी रोक न पाती है दिल की खुशियाँ होंठों पर आ झूम-झूम मुस्काती है……….. वैसे तो वो है ही सुन्दर गुस्से में सौंदर्य-समंदर उस पर जब मुस्काती है लाखों क़त्ल कर जाती है लड़के सब उसके दीवाने कहते किस्से अपने मनमाने लेकिन अनुभव से कहता हूँ मैं ही दिल में उसके रहता हूँ लेकिन न जाने क्यों उससे ये सब कहने से डरता हूँ ……….. गर आँखे नम हैं मेरी तो उसकी भी आँखें हैं खारी जितनी हलचल में दिल में उसके दिल में उससे भार...

ग़लतियों से जुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं..

ग़लतियों से जुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं, दोनो इंसान हैं खुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं, तू मुझे और मैं तुझे इल्ज़ाम देते हैं मगर, अपने अंदर झाँकता तू भी नहीं मैं भी नहीं, ग़लत फ़हमियों ने कर दी दोनो मैं पैदा दूरियाँ,वरना फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नही.... चाहते दोनों बहुत एक दूसरे को हैं मगर, ये हक़ीक़त है कि मानता तू भी नहीं मैं भी नहीं.....