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Showing posts from November, 2015

कोई ये कैसे बताये...

कोई ये कैसे बताये के वो तनहा क्यों है, वो जो अपना था, वही और किसी का क्यों है... यही दुनिया है तो फिर, ऐसी ये दुनिया क्यों है यही होता है तो, आखिर यही होता क्यों है?  इक ज़रा हाथ बढ़ा दे तो, पकड़ ले दामन उस के सीने में समा जाए, हमारी धड़कन, इतनी कुर्बत है तो फिर फासला इतना क्यों है? दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अबतक कोई, इक लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई, आस जो टूट गयी है फिर से बंधाता क्यों है?  तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता, कहते है प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता, है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों है? कोई ये कैसे बताये..... Click here to listen Song (YouTube Link) गीतकार : कैफी आज़मी, गायक : जगजीत सिंग, संगीतकार : जगजीत सिंग, चित्रपट : अर्थ (१९८३)

हम बेखुदी में..

हम बेखुदी में तुम को पुकारे चले गये, सागर में जिंदगी को उतारे चले गये... देखा किये तुम्हे हम बन के दीवाना, उतरा जो नशा तो, हमने ये जाना.... सारे वो जिंदगी के सहारे चले गये... तुम तो ना कहो हम खुद ही से खेले, डूबे नहीं हम ही यूँ, नशे में अकेले शीशे में आप को भी उतारे चले गये.. हम बेखुदी में.. गीतकार : मजरुह सुलतानपुरी, गायक : मोहम्मद रफी, संगीतकार : सचिनदेव बर्मन, चित्रपट : काला पानी - 1958 Click here to listen Song (Youtube Link)