दिल के सन्नाटे खोल कभी...

दिल के सन्नाटे खोल कभी,
तन्हाई तू भी बोल कभी...

परछाईयाँ चुनता रहता है
क्यों रिश्ते बुनता रहता है
इन वादों के पीछे कोई नहीं
क्यों वादे सुनता रहता है.


दिल के सन्नाटे खोल कभी,


तन्हाई तू भी बोल कभी...
बुझ जायेगी सारी आवाज़ें
यादें- यादें रह जायेगी
तस्वीरें बचेगी आँखों में
और बातें सब कह जायेगी.


दिल के सन्नाटे खोल कभी,
तन्हाई तू भी बोल कभी.........






- Gulzaar

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