ना उड़ा यूं ठोकरों से मेरी..

ना उड़ा यूं ठोकरों से मेरी खाक\-ए\-कब्र ज़ालिम
यही एक रह गई है मेरी प्यार की निशानी

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा ना था

वो के खुशबू की तरह फ़ैला था मेरे चारसू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता ना था

रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही
झनक कर देखा गली में कोई भी आया ना था

याद करके और भी तकलीफ़ होती थी अदीम
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा ना था


By- Jagjeet Singh Collections 

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