अब छलकते हुए सागर नहीं देखे जाते...

अब छलकते हुए सागर नहीं देखे जाते
तौबा के बाद ये मंज़र नहीं देखे जाते...

मस्त कर के मुझे, औरों को लगा मूँ साक़ी
ये करम होश में रह कर नहीं देखे जाते...

हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन
उन के बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते...

अब छलकते हुए सागर नहीं देखे जाते...

स्वर: बेगम अख्तर

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