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Showing posts from May, 2014

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा भी न था...

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा भी न था सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था वो के ख़ुश-बू की तरह फैला था चार सू मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था मैं तेरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा सारी दुनिया में मगर कोई तेरे जैसा न था ये भी सब वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं आँख धुँधलाई हुई थी शहर धुंदलाया न था सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब एक पत्थर था ख़ेमोशी का के जो हटता न था याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम' भूल जाने के सिवा अब कोई भे चारा न था मस्लेहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम' वरना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था - 'अदीम' हाशमी

तुम्हारे साथ नित्य विरोध; अब सहा नहीं जाता...

तुम्हारे साथ नित्य विरोध; अब सहा नहीं जाता, दिन-प्रतिदिन ये ऋण बढ़ता ही जा रहा है। न जाने कितने लोग; तेरी सभा में आये, तुझे प्रणाम किये…चले गये। मैं मलिन वस्त्रों में लिपटा बहार ही छिपा रहा, मेरा मान मिट्टी में मिल गया । मन की इस वेदना को मैं तुझसे कैसे कहूँ? तुझसे मन की बात कहने का साहस नहीं होता। इस अपमान को परे कर, अब यही प्रार्थना है की मुझे अपने चरणों में क्रीतदास की तरह पड़ा रहने दे तुम्हारे साथ नित्य विरोध; अब सहा नहीं जाता। ..गीतक्रम १४५ से (गीतांजलि : रविन्द्र नाथ ठाकुर )

अजीब थी वो अजब...

अजीब थी वो अजब तरहां चाहता था मैं वो बात करती थी और खवाब देखता था मैं

अच्छे हैं हम सुन के तुम..

अच्छे हैं हम सुन के तुम बीमार हो गए इक पल में क्या से क्या ऐ मेरे यार हो गए.. - Md. Irshaad

Can anyone love anyone as much as...

Can anyone love anyone a s much as he did not seen her even once.... In her memory, He Can Cry?? Yes, I know the answer! Believe it or not, My God knows the truth... The Eternal knows that in your Loneliness I never apart from you for even a second. In my defence, I can say only that i don’t have the courage that I lies by witnessing to God, my Soul will never excuse myself on it Only I can understand what goes on me... I meet several of people in my life, but why i feel like only you are mine... I do not want anything from you.. But please don’t ignore me. I tried hard to forget you but nothing happens... If I were font of you then I would never need to say anything, you were got understood itself.. But how unlucky am I? It never happened! I am accepting, All my faults, but if you will not excuse me then who will? Please response... If you will still continue ignoring me.. i will lost my believe on Concept of love!! - Abhishek...

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ..

रंजिश ही सही , दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ कुछ तो मेरे पिन्दार - ए - मोहब्बत [1] का भरम रख तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ पहले से मरासिम [2] न सही , फिर भी कभी तो रस्मों - रहे [3] दुनिया ही निभाने के लिए आ किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फ़ा है , तो ज़माने के लिए आ इक उम्र से हूँ लज़्ज़त - ए - गिरिया [4] से भी महरूम [5] ऐ राहत - ए - जाँ [6] मुझको रुलाने के लिए आ अब तक दिल - ए - ख़ुशफ़हम [7] को तुझ से हैं उम्मीदें ये आखिरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ शब्दार्थ   :   प्रेम का गर्व प्रेम - व्यहवार सांसारिक शिष्टाचार रोने का स्वाद   वंचित   प्राणाधार किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन Creation : Ahmad Faraaj

ना उड़ा यूं ठोकरों से मेरी..

ना उड़ा यूं ठोकरों से मेरी खाक\-ए\-कब्र ज़ालिम यही एक रह गई है मेरी प्यार की निशानी फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था सामने बैठा था मेरे और वो मेरा ना था वो के खुशबू की तरह फ़ैला था मेरे चारसू मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता ना था रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही झनक कर देखा गली में कोई भी आया ना था याद करके और भी तकलीफ़ होती थी अदीम भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा ना था By- Jagjeet Singh Collections 

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि....

Creation : Mirja Gaalib हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले कहाँ मयखाने का दरवाजा ‘गालिब’ और कहाँ वाइज़ पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के...

गुजर गया वो वक़्त...

गुजर गया वो वक़्त जब तेरी हसरत थी मुझे ओ मलिका-ऐ -हुस्न, अब तू खुदा व् बन जाये तो तेरा सजदा न करू! - Abhishek Jha

ये मेरा इश्क़ था या....

ये मेरा इश्क़ था या दीवानगी की इन्तेहाँ, उसके ही करीब से गुजर गए.. उसके ख्यालों में, उसे देखा ही नहीं - Abhishek Jha

कभी फुर्सत मिले तो दिल में उतर कर देख...

कभी फुर्सत मिले तो दिल में उतर कर देख हम चेहरे से इतने नज़र नहीं आते.... - Abhishek Jha

दिल के सन्नाटे खोल कभी...

दिल के सन्नाटे खोल कभी, तन्हाई तू भी बोल कभी... परछाईयाँ चुनता रहता है क्यों रिश्ते बुनता रहता है इन वादों के पीछे कोई नहीं क्यों वादे सुनता रहता है. दिल के सन्नाटे खोल कभी, तन्हाई तू भी बोल कभी... बुझ जायेगी सारी आवाज़ें यादें- यादें रह जायेगी तस्वीरें बचेगी आँखों में और बातें सब कह जायेगी. दिल के सन्नाटे खोल कभी, तन्हाई तू भी बोल कभी......... - Gulzaar